गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान कैसे मिलें भगवान कैसे मिलेंजयदयाल गोयन्दका
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प्रस्तुत है भक्त को भगवान कैसे मिलें....
अनन्यभक्ति
गीता के सैकड़ों श्लोकों में एक श्लोक के धारण करने से ही आपका कल्याण हो सकता है।
राजविद्या राजगुह्य पवित्रमिदमुक्तमम्।
प्रत्यक्षावगमं धम्य सुसुखं कर्तुमव्ययम्।।
(गीता ९।२)
यह विज्ञानसहित ज्ञान सब विद्याओंका राजा, सब गोपनीयोंका राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फलवाला, धर्मयुक्त साधन करनेमें बड़ा सुगम और अविनाशी है।
भक्ति राजविद्या है इसका दूसरा नाम है राजगुह्य। जहाँ कहीं भी गीतामें गुह्यतम शब्द मिलेगा, वहाँ भगवान्की अनन्य भक्तिके लिये ही मिलेगा।
याद रखें-आप भगवान्की प्राप्ति नहीं कर लेंगे एवं प्रलय हो जायगी तो फिर जब सृष्टि होगी तब आपको पुन: आना होगा।
भोजन करनेसे जिस तरह प्रत्यक्षमें क्षुधाकी निवृत्ति होती है, उसी तरह भजन करनेसे प्रत्यक्षमें शान्ति-आनन्द मिलता है।
भगवान् कहते हैं-मेरी प्रासिका मार्ग सुगम है, तुम कठिन क्यों मान रहे हो ?
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।
(गीता ९।३०)
यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही माननेयोग्य है; क्योंकि वह यथार्थ निश्चयवाला है। अर्थात् उसने भलीभाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वरके भजनके समान अन्य कुछ भी नहीं है।
अति पापी भी शीघ्र भगवान्को प्राप्त हो जाता है फिर धर्मात्माकी तो बात ही क्या है? इन सब बातोंका खयाल करके हमलोगोंको भगवान्की भक्तिमें तत्पर हो जाना चाहिये।
अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परंतप।
अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवत्र्मनि।।
(गीता ९।३)
हे परन्तप! इस उपर्युक्त धर्ममें श्रद्धारहित पुरुष मुझको न प्राप्त होकर मृत्युरूप संसारचक्रमें भ्रमण करते रहते हैं।
मुझको नहीं प्राप्त होकर संसारचक्र में घूमते हैं यह क्यों कहा? चोरी, व्यभिचार करनेवालेके लिये यह कहना ही ठीक नहीं लगता कि मेरी प्राप्ति न होकर नरकको जाता है। इसी प्रकार यहाँ ऐसा कहना है, पर यहाँ एक रहस्य है। राजाके पुत्रका राज्यपर जन्मसिद्ध अधिकार है। ऐसे ही मनुष्योंका जन्मसिद्ध अधिकार परमात्माकी प्राप्ति है। राजपुत्र यदि प्रजापर अन्याय करता है, सताता है तो राजा लाचार होकर उस राजपुत्रको कैदमें डाल देता है। यहाँ राजाके स्थानपर भगवान् एवं राजपुत्रके स्थानपर हमलोग हैं, राजधानीका अर्थ सारा संसार है, चौरासी लाख योनियाँ जेलखाना हैं। राज्यको न पाकर कैदमें पड़ता है। ‘मां अप्राप्य' मेरी प्राप्तिके अवसरको पाकर भी चौरासी लाख योनियोंके चक्करमें पड़ता है। भगवान्ने दया करके यह अवसर दिया था।
कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही।
ऐसे शरीरको पाकर जो अपनी आत्माका कल्याण नहीं करता, संशयमें चक्कर लगाता है वह मूर्ख है। अत: एक-एक करके करो। भगवान्ने राजविद्या आदि आठ विशेषण लगाये हैं। पूरा अध्याय भगवान्के भावमें पिरोया हुआ है। कम-से-कम छब्बीससे चौंतीसवें श्लोकतककी व्याख्यापर ध्यान दो। प्रत्येक श्लोकमें विशेषता है। चेष्टा तो करो, विश्वास करो। भवसागरसे सुखसे तरनेकी इच्छा हो तो भक्ति करो।
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